समाज सेवा प्रभाग के राष्ट्रीय सम्मेलन का सेवा समाचार
सोशल विंग का पाँच दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन सफलतापूर्वक सम्पन्न
समाज सेवा प्रभाग का पांच दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन (दिनांक 15 सितम्बर से 19 सितंबर, 2023 तक) मूल्य आधारित सेवा द्वारा समृद्ध समाज की पुनर्स्थापना विषय पर सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। सम्मेलन में भारत व नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों से करीब पांच हजार समाजसेवियों ने भाग लिया। सम्मेलन में उपस्थित वक्ताओं ने अपने अनमोल विचारों से सम्मेलन के सहभागियों को लाभान्वित किया।
सम्मेलन के स्वागत सत्र में प्रभाग के राष्ट्रीय संयोजक राजयोगी ब्रह्माकुमार अवतार भाई ने कहा कि परमपिता परमात्मा की छत्रछाया व यज्ञ स्थापना के समय की समस्त पूर्वज आत्माओं की सूक्ष्म प्रेरणाओं से संस्थान द्वारा आयोजित होने वाले सभी कार्यक्रम सफल रहे हैं। ब्रह्माकुमारी संगठन के परिसरों में पहली बार आने वाला हर व्यक्ति स्वयं को धन्य महसूस करता है।
गुलबर्गा सब जोन की संचालिका और समाज सेवा प्रभाग की क्षेत्रीय संयोजिका राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी शिवलीला बहन ने सभी वर्ग के समाजसेवियों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सेवा ही पूजा, आराधना और वंदना है। प्रत्येक समाज सेवी प्रभू प्रिय है। हम सभी भारतीय देवी देवताओं के वंशज हैं, किन्तु जीवन मूल्यों की गिरावट होने और दिव्यता लुप्त होने के कारण सम्पूर्ण समाज दु:खी और अशान्त है। इस संदर्भ में ब्रह्माकुमारीज संस्थान समाज के हर वर्ग में मूल्यों की पुनर्स्थापना करके सम्पूर्ण विश्व को दैवी दुनिया बनाने की दिशा में अथक रूप से प्रयासरत है। आध्यात्मिकता अपनाकर यदि समाज सेवा की जाए तो उसके अधिक बेहतर परिणाम हो सकते हैं। आध्यात्मिकता से ही स्वयं का चरित्र निर्माण करना संभव है। इसलिए प्रत्येक समाजसेवी को आध्यात्मिकता अपनाकर समृद्ध समाज के निर्माण में अपना अमूल्य योगदान देना चाहिए। अब समाज को वाइन शॉप छोड़ डिवाइन शॉप में जाने की आवश्यकता है।
भूतपूर्व न्यायाधीश, हरियाणा एंटी नारकोटिक्स कमेटी सदस्य जस्टिस ए.एन. जिन्दल के अनुसार आज लोग अनेक तरह से समाज सेवा करते हैं। कुछ लोग गरीबों को खाना खिलाते हैं, अनाथ आश्रम और वृद्धाश्रम में सेवाएं करते हैं। दूसरी ओर आज के युवा गलत तरीकों से अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं। उन्हें बचाना प्रत्येक समाजसेवी का मूल कर्तव्य है। आज बच्चे अपना संस्कार भूलते जा रहे हैं। हमें उन्हें पुन: संस्कारी बनाने के लिए पहले खुद को संस्कारी बनाना होगा, तभी हम उनसे अच्छे व्यवहार की आशा रख सकते हैं।
सारिका नारंग ने कहा कि समाज सेवा का क्षेत्र बहुत विशाल है। पर्यावरण, शिक्षा, राष्ट्र निर्माण आदि अनेक क्षेत्रों के माध्यम से सेवा करके समाज को नया रूप दिया जा सकता है। यदि हम सभी समाजसेवी अपनी सेवाओं में नैतिक मूल्यों को शामिल कर लेते हैं तो समाज को एक नई दिशा प्रदान करना आसान होगा। आज हमें दधीचि ऋषि समान समर्पित भाव से निस्वार्थ सेवा करने वाले समाज सेवकों की आवश्यकता है जिन्होंने विपदा आने पर अपना सर्वस्व दान कर दिया। लोगों को आत्मनिर्भर बनाना वास्तविक समाज सेवा है। हमारी सेवा ऐसी हो जो समाज को एक नई रोशनी प्रदान करे।
समाज सेवा प्रभाग की अध्यक्षा राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी संतोष दीदी ने कहा कि समाज में अनेक बुराइयां हैं जिन्हें हम पसन्द नहीं करते, उन्हें हम बदलना चाहते हैं। लेकिन इसके लिए पहले स्वयं को बदलना आवश्यक है। हर घर में दो चीजें होती हैं, एक आईना और दूसरा खिडक़ी। आईने में हम खुद को देखते हैं और खिडक़ी से हम बाहर के लोगों को देखते हैं। यदि हम बाहर देखना छोडकर ज्ञान के दर्पण में स्वयं को देखेंगे तो अपना परिवर्तन कर सकेंगे। अपना परिवर्तन करके ही हम समाज का परिवर्तन कर सकते हैं। समाज की सेवा केवल अपनी प्रसिद्धि पाने के लिए नहीं होती बल्कि औरों की सेवा करके खुशी महसूस करना ही वास्तविक समाज सेवा है। यदि अपने लाभ के लिए समाज सेवा करते हैं तो वह सेवा नहीं, व्यापार है। त्याग की भावना से ही सच्ची सेवा करना सम्भव है। समाज सेवा में आध्यात्मिकता का समावेश होना आवश्यक है तभी समाज को समृद्ध बनाया जा सकता है।
बीकानेर सबजोन प्रभारी वरिष्ठ राजयोग प्रशिक्षिका ब्रह्माकुमारी कमल बहन ने कहा कि जीवन को समृद्ध बनाने का आधार सद्गुण और दिव्य गुण हैं। हर व्यक्ति गुणवान तो बनना चाहता है लेकिन गुणों के मूल स्रोत का ज्ञान नहीं होने के कारण उसे गुण धारण करना कठिन लगता है। राजयोग का अभ्यास हमें सद्गुणों से भरपूर बनाता है। जिस प्रकार प्रकाश का मुख्य स्रोत सूर्य है, उसी प्रकार दिव्य गुणों का मुख्य स्रोत परमपिता परमात्मा है जिससे सम्बन्ध जोड़कर हम अपने अंतर्निहित शक्तियों को जागृत कर सकते हैं। गुणों से भरपूर व्यक्ति ही समाज को नई दिशा दे सकता है। अजमेर से आई राजयोग प्रशिक्षिका ब्रह्माकुमारी अंकिता बहन ने स्वागत सत्र का सफलतापूर्वक मंच संचालन किया।
उद्घाटन सत्र
सम्मेलन का उद्घाटन सत्र मुख्य अतिथियों के सम्मान और उद्बोधन के साथ हुआ। सभागार में उपस्थित 5000 से अधिक मेहमानों ने वक्ताओं के मूल्यवान विचारों से लाभ लिया।
अतिथियों का स्वागत करते हुए समाज सेवा प्रभाग के राष्ट्रीय संयोजक राजयोगी ब्रह्माकुमार अवतार भाई ने सभी मुख्य अतिथियों, विशिष्ट अतिथियों और सभागार में उपस्थित सभी मेहमानों का ईश्वरीय स्नेह के साथ अभिनंदन किया।
समाज सेवा प्रभाग के उपाध्यक्ष राजयोगी ब्रह्माकुमार प्रेम भाई (गुलबर्गा) ने कहा कि हमने अनेक वर्षों पहले राम राज्य की परिकल्पना की थी। लेकिन यह मालूम नहीं था कि इसकी योजना कैसे बनाई जाएगी। ब्रह्माकुमारीज द्वारा दिए जा रहे ईश्वरीय ज्ञान से यह महसूस होता है कि राम राज्य की कल्पना साकार करना सम्भव है। आज विश्व भर में ब्रह्माकुमारी बहनें नि:स्वार्थ भाव से सेवाएं कर रही हैं। संस्थान के माध्यम से समाज के हर वर्ग में आध्यात्मिकता की आधारशिला का निर्माण किया जाता है जो राम राज्य जैसे समृद्ध समाज की पुनर्स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रेरणा संदेश देते हुए समाज सेवा प्रभाग की अध्यक्षा राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी सन्तोष दीदी ने कहा कि विज्ञान के अनेक साधन उपलब्ध होते हुए भी मनुष्य सुख, शान्ति की तलाश में है। सन्तुष्टता का धन किसी के पास नहीं। गुणों से सम्पन्न व्यक्ति ही सन्तुष्ट रहता है। हीनता और अभिमान दोनों ही अवगुण दु:खी करते हैं। हर व्यक्ति धन, साधन, प्रतिष्ठा चाहता है। जिसके जीवन में चाहिए शब्द है, वह कभी सुखी नहीं रह सकता। हमें जैसा भी जीवन मिला है, वह परमात्मा का आर्शीवाद है। हमें अपने जीवन का मूल्य पता चल जाए तो हम अपने जीवन को मूल्यवान बना सकते हैं। गुणों को धारण करने वाला अपने जीवन को हीरे तुल्य बना सकता है। अवगुण धारण करने वाला अपना जीवन पत्थर समान बना लेता है। इसलिए अपने जीवन को मूल्यवान बनाने का लक्ष्य पक्का होना चाहिए। अपना जीवन ऐसा बनाओ जो औरों को प्रेरणा दे सके।
ब्रह्माकुमारी संगठन के अतिरिक्त महासचिव राजयोगी ब्रह्माकुमार बृजमोहन भाई ने कहा कि सुख, शांति और आनन्द का मुख्य स्रोत परमात्मा है। हम सभी उसी परमात्मा की संतान हैं। इस नाते से हर समाजसेवी बधाई का पात्र है क्योंकि वह अपने पिता का कर्तव्य निभा रहा है। समाज सेवा को निरंतर बेहतर बनाने के लिए अपने जीवन में आध्यात्मिकता का संचार करना आवश्यक है।
सम्मेलन के उदघाटन सत्र की मुख्य अतिथि व अनुसूचित जाति के राष्ट्रीय आयोग की सदस्या डॉ. अंजू बाला ने कहा कि विज्ञान और आध्यात्म दोनों खोज के विषय हैं। हमें सुन्दर और समृद्ध समाज के निर्माण हेतु दोनों को साथ लेकर चलना होगा। मधुर गीत गाकर हम किसी को प्रसन्न कर सकते हैं और कटु वचन कहकर महाभारत जैसी स्थिति भी उत्पन्न कर सकते हैं। ब्रह्माकुमारीज संस्थान हमें जीवन जीने की कला सिखाता है। यह संस्थान एक सरोवर है जिसके संपर्क में आने से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आना निश्चित है।
ब्रह्माकुमारी संगठन के महासचिव राजयोगी ब्रह्माकुमार निर्वैर भाई ने (वीडियो कॉन्फ्रेंस द्वारा) कहा कि प्रत्येक समाजसेवी की भावना है कि समाज में सुख, शान्ति फैल जाए। आज भौतिकता का प्रभाव सारे संसार में फैला हुआ है। भोग वृत्ति के कारण लोभ लालच के संस्कार प्रबल हो उठे हैं। ऐसी स्थिति में नैतिक मूल्यों का पतन होना स्वाभाविक है। समाज को नई दिशा देने के लिए हमारा चरित्र श्रेष्ठ होना आवश्यक है। एक श्रेष्ठ संस्कारों वाला व्यक्ति पूरे समाज को बदलने की क्षमता रखता है। यदि समाज सेवी स्वयं को मूल्यवान बनाकर सेवा करेंगे तो निश्चित रूप से सम्पूर्ण विश्व स्वर्ग बन जाएगा।
समाज सेवा प्रभाग की दिल्ली क्षेत्रीय संयोजिका ब्रह्माकुमारी आशा बहन ने कहा कि समाज को अच्छा बनाने के लिए सभी लोग प्रयासरत हैं। समाज में अनेक समस्याएं व्याप्त हैं जिनका सफल समाधान राजयोग मेडिटेशन के अभ्यास से सम्भव है। एकाग्रता और सफलता का आधार भी राजयोग मेडिटेशन है जिसे हमें अपनी दिनचर्या में अवश्य शामिल करना चाहिए ।
उत्तराखण्ड के भगवानपुर विधान सभा क्षेत्र की विधायिका श्रीमती ममता राकेश ने कहा कि इस दिव्य और अलौकिक प्रांगण में आकर मैं स्वयं को सौभाग्यशाली महसूस करती हूँ। मैंने अनेक बदलाव देखे हैं। एक समय था जब विद्यालयों में नैतिक शिक्षा का पाठ्यक्रम भी रखा जाता था और अनेक तरीकों से बच्चों को नैतिक मूल्यों का महत्व समझाया जाता था। किन्तु आज की शिक्षा पद्धति बदल चुकी है। नैतिक मूल्यों का अभाव युवाओं को भटका रहा है। ब्रह्माकुमारीज संस्थान समाज में नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए प्रयासरत है। इस मंच के माध्यम से मैं अपनी राज्य सरकार और भारत सरकार से अनुरोध करती हूँ कि विद्यार्थियों के चारित्रिक विकास हेतु ब्रह्माकुमारीज द्वारा दिए जा रहे ईश्वरीय ज्ञान को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। यह ज्ञान एक ऐसा दीपक है जिसका प्रकाश अंधकार और अहंकार दोनों को दूर कर देगा। संस्थान के इन प्रयासों को देखते हुए मैं चाहूंगी कि मेरे विधानसभा क्षेत्र में भी ब्रह्माकुमारीज का एक सेवाकेन्द्र खोला जाए ताकि वहां की जनता भी ईश्वरीय ज्ञान का लाभ प्राप्त कर सके ।
रोटरी क्लब के पूर्व अध्यक्ष श्री गजेन्द्र नारंग ने कहा कि सेवा अनेक लोग करते हैं किन्तु निष्कामी सेवा करने वाले पर ईश्वर का आर्शीवाद सदा रहता है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य अलग-अलग हो सकता है किन्तु वास्तविक लक्ष्य यही होना चाहिए कि हम सात्विक और आध्यात्मिक जीवन जीते हुए सम्पूर्ण मानव जाति की सेवा कर जीवन मुक्ति प्राप्त करें। जन कल्याण से ही जगत कल्याण सम्भव है। यदि सेवा में प्राप्ति का भाव है तो वह सेवा फलीभूत नहीं होत। केवल नि:स्वार्थ भाव से की गई सेवा ही हमें भवसागर से पार लेकर जाती है।
समाज सेवा प्रभाग के मुख्यालय संयोजक ब्रह्माकुमार बिरेन्द्र भाई ने सभी वक्ताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया। मुम्बई से पधारी समाज सेवा प्रभाग की अतिरिक्त राष्ट्रीय संयोजिका ब्रह्माकुमारी वन्दना बहन ने मंच संचालन किया।
सम्मेलन का प्रथम सत्र :
सकारात्मकता – जीवन का सार
मुख्य वक्ता के रूप में मुंबई से पधारे ब्रह्माकुमार गिरीश भाई ने कहा कि जीवन की परिभाषा नकारात्मक हो तो लाख जतन करें तो भी सकारात्मक नहीं हो सकते। हम सकारात्मकता का अनुभव करते हैं तभी जीवन में शान्ति, स्नेह, आनन्द और खुशी आती है। आज मनुष्य सुख, शान्ति, प्रेम का कटोरा लेकर घूम रहा है। पैसा कमाने की चीज है। लेकिन सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम ढूंढना पड़ता है। लोग शान्ति, आनन्द, खुशी, दौलत, मकान, भौतिक साधन और पारिवारिक सम्बन्धों में ढंूढ रहे हैं। अपने भविष्य के बारे में सोचकर हर व्यक्ति चिंताग्रस्त है। संसार में आने वाला हर व्यक्ति जानता है कि एक दिन यह शरीर छोडऩा ही है, तो मनुष्य डरता क्यों है। वास्तविकता का अज्ञान ही मनुष्य में भय उत्पन्न करता है। आत्मा का ज्ञान होने के बाद मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है । मनुष्य नष्ट होने वाले भौतिक शरीर के आधार पर जी रहा है। दूध को सताने पर दही बनता है, दही को सताने पर मक्खन बनता है और मक्खन को सताने पर घी बनता है। दूध एक दिन में खराब होता है लेकिन घी कभी खराब नहीं होता। परिस्थितियां आने पर ही हमारा जीवन मूल्यवान बनता है। सदा सकारात्मक रहने का अभ्यास सत्य ज्ञान के आधार पर सम्भव है।
अतिथियों का स्वागत करते हुए प्रोफेसर दिनेश चहल महेन्द्रगढ़ ने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि अच्छा काम करने से कुछ नहीं होता, समाज तो ऐसा ही रहेगा। ऐसा सोचने वाले नकारात्मक विचारों वाले होते हैं। ब्रह्माकुमारीज संस्थान हमें आध्यात्मिक संस्कारों से जोड़ता है। यदि हमें आध्यात्मिकता मिल जाए तो हमारा जीवन बदल जाएगा। आधुनिक संसार में विज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिकता की आवश्यकता है। हम अपने परिवार के लिए काम करते हैं। लेकिन हमें शान्ति के लिए भी काम करना चाहिए। समाज सेवा के लिए खुद पर और परमात्मा पर भरोसा होना आवश्यक है। समाज सेवा करते समय पद, प्रतिष्ठा, नाम, मान शान की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। कामयाबी के सफर में परेशानियों रूपी धूप आना आवश्यक है, तभी हम उनका सामना करके मजबूत बनते हैं और सफलता मिलेगी। लोगों से हमारा सम्बन्ध दूध व पानी की तरह होना चाहिए, पानी और तेल की तरह नहीं होना चाहिए। समाज सेवा के लिए संस्कारों का शुद्धिकरण आवश्यक है। समाज को दिशा देने वाले वही हैं जो इंटरनेट के साथ इनर नेट का इस्तेमाल करते हैं, डिजिटल के साथ डिवाइन होना चाहिए।
जम्मू से पधारी समाज सेवा प्रभाग की सक्रिय सदस्या राजयोग प्रशिक्षिका ब्रह्माकुमारी सन्तोष बहन ने सभागार में उपस्थित मेहमानों को आत्मा व परमात्मा की संक्षिप्त जानकारी देते हुए राजयोग मेडिटेशन के माध्यम से गहन शान्ति की अनुभूति कराई ।
समाज सेवा प्रभाग की राजस्थान जोन की संयोजिका राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी शान्ता दीदी ने कहा कि आज मैं स्वयं को बहुत ही भाग्यशाली समझ रही हूँ कि ऐसे कलिकाल के समय पर हमारे परमात्मा पिता ने जागृत कर दिया और कलिकाल के युग में शांति से, प्रेम से सबके साथ रह सकते हैं, उसकी विधि हमें उसने बता दी। परमात्मा कौन है, कैसा है, कैसे आकर सत्य ज्ञान देकर अपने साथ सम्बन्ध जुटाना सिखाता है, यह सारा ज्ञान उसने हमें दे दिया। परमात्मा ने सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान दिया जिसके आधार पर हमने परमात्मा से सम्बन्ध जोड़ा। परमात्मा से सम्बन्ध जोडऩे के बाद जो खुशी मिलती है, उसका कोई ठिकाना नहीं। वह अनमोल है। अतुलनीय है।
हरियाणा चरखी दादरी से आए समाज सेवा प्रभाग के कार्यकारी सदस्य राजयोगी ब्रह्माकुमार सुनील भाई ने मंच संचालन किया।सम्मेलन का द्वितीय सत्र :
मूल्य आधारित समाज सेवा
गुलबर्गा सबजोन से आई वरिष्ठ राजयोग प्रशिक्षिका बीके विजया बहन ने कहा कि सर्वश्रेष्ठ सुन्दर समाज की रचना में सभी लोग विभिन्न क्षेत्रों में समाज सेवा के माध्यम से प्रयत्नशील हैं। समृद्ध समाज के निर्माण में हम सभी को अनेक मूल्यों की धारणा करके सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ंगे तो एक प्रकार से आत्मिक तृप्ति का अनुभव होगा। किसी को हमारे द्वारा खुशी व समाधान मिलता है, शान्ति व प्रेम की अनुभूति होती है तो कर्म सिद्धांत अनुसार वह हमारे पास लौटकर भी आता है। सात रंगों से इंद्रधनुष बनता है। सात सुरों से संगीत बनता है। इसी प्रकार लोगों से मिलकर समाज सेवा करने पर सफलता अच्छी मिलती है। हमारे जीवन का मूल्य तभी बढ़ता है जब दिव्य गुणों की हमारे अन्दर धारणा होती है। सेवा में एक दूसरे के साथ तालमेल बिठाकर चलना होता है। किसी मशीन को चलाने के लिए छोटे-छोटे कल पुर्जों की भी आवश्यकता होती है। इसी प्रकार संगठन में छोटे बड़े सभी का मान सम्मान रखते हुए उनके साथ तालमेल बिठाना जरूरी है। इसके लिए हमारे अन्दर प्रेम का गुण बहुत आवश्यक है। मानव जीवन अनमोल है, यह बात ध्यान में रखते हुए सभी को आगे बढ़ाना है। इसलिए अपने से छोटों को प्रोत्साहन देकर आगे बढ़ाना चाहिए तो सेवा में सफलता मिलती है। जैसे विकारों का सम्बन्ध एक दूसरे से जुड़ा है, ठीक उसी प्रकार गुणों का भी एक दूसरे से सम्बन्ध है। एक गुण जीवन में है तो दूसरे गुण स्वत: ही जीवन मे जुड़ते जाते हैं।
समाज सेवा प्रभाग के केरल जोन के क्षेत्रीय संयोजक राजयोगी ब्रह्माकुमार ई.वी. स्वामीनाथन भाई ने कहा कि समाजसेवी में उमंग उत्साह, संतुष्टता और अच्छा स्वास्थ्य होना चाहिए। समाज सेवा का अर्थ है अपने दिव्य धन को बढ़ाना। समाज सेवक रोटी, कपड़ा और मकान देता है। आपदा आने पर अन्दर का देवत्व स्वत: ही जागृत हो जाता है। यही वास्तविक समाज सेवा है। हमें किसी प्राकृतिक आपदा की प्रतीक्षा नहीं करना चाहिए। हम अपने अन्दर की दिव्यता को जागृत करेंगे तो स्वत: ही हम अच्छे समाज सेवक बन सकते हैं। हमारा भोजन शुद्ध सात्विक होना चाहिए। शुद्ध शाकाहारी होना भी अपने आप में एक समाज सेवा है। किसी जानवर को मारकर खाने वाला अच्छा समाजसेवी नहीं हो सकता। सेवा करने के लिए दिव्य गुणों का वस्त्र पहनना है।
सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापिका श्रीमती ब्रिज लता ने कहा कि मैं यहा आकर स्वयं को धन्य महसूस कर रही हूँ। यहां की सभी गतिविधियां यंत्रवत चल रही हंै जो अलौकिक शक्तियों की गहरी अनुभूति की ओर आकर्षित करती हैं। सेवा दो तरह की है निष्काम व सकाम सेवा। निष्काम सेवा केवल मन की खुशी के लिए की जाती है। सेवा का क्षेत्र बहुत बड़ा है। बिना किसी भेदभाव से की गई सेवा ही फलीभूत होती है।
करनाल सेवा केंद्र की प्रभारी ब्रह्माकुमारी प्रेम बहन ने कहा कि सर्वोच्च समाज सेवक परमपिता परमात्मा है। इस समय समाज घोर कलियुग के दौर से गुजर रहा है जहां मनुष्य गुणों से कंगाल हो गया है। जंगल में शेर कभी शेर से नहीं डरता लेकिन समाज में एक आदमी दूसरे आदमी से डरता है। विश्वास और स्नेह का गुण मानव खो चुका है। दया, अहिंसा, प्रेम, सहानुभूति, करुणा आदि मूल्य जीवन से नष्ट होते जा रहे हैं। पुन: उन गुणों को जागृत करने के लिए यह सम्मेलन रखा गया है। सत्य, अहिंसा और धर्म आज समाज में दिखाई नहीं देता। मन से भी दुख देना भी एक प्रकार की हिंसा है। दया का गुण जरूरी है जो धर्म का मूल है। हर समाज सेवी मानव जीवन के लिए आशा की किरण हैं। सेवाओं में आध्यात्मिकता का समावेश समाज सेवा को बेहतर बनाएगा और समाज को मूल्यनिष्ठ बनाने में सहयोगी बनेगा ।
समाज सेवा प्रभाग की कार्यकारी सदस्या ब्रह्माकुमारी सरिता बहन ने मंच संचालन करते हुए कहा कि मूल्यों को जीवन में धारण करके समाज सेवा को बेहतर बनाया जा सकता है। तलवार की कीमत म्यान से नहीं बल्कि उसकी धार से होती है। मनुष्य की कीमत उसकी शारीरिक सुन्दरता से नहीं बल्कि उसके सुन्दर चरित्र से होती है। मूल्य और गुण मानव जीवन का श्रृंगार है। सेवाओं में निस्वार्थ भाव, नम्रता, सहनशीलता के गुण न हो तो वे खुशी और दुआओं की अनुभूति नहीं करा सकते हैं। स्वयं को गुणों से सजाना होगा तभी हम उत्कृष्टता से समाज की सेवा कर सकते हैं। जीवन को गुणों से सजाते हैं तो हमारा जीवन एक मिसाल बन जाता है।सम्मेलन का तृतीय सत्र –
तनाव मुक्त जीवन
समाज सेवा प्रभाग की कार्यकारी सदस्या ब्रह्माकुमारी विजया बहन (ओ.आर.सी.दिल्ली) ने कहा कि सदियों से हम सांसारिक लोगों की यही तमन्ना रही है कि हम जो कुछ चाहे वह मिल जाए। इच्छाएं बनी रही और हम प्राप्त करते रहे। फिर हमने चाहा कि ऐसा कुछ करें जो हमें सब कुछ मिल जाए। इसी चाहत में मनुष्य ने स्वयं को तनावग्रस्त बना लिया और हमारी सन्तुष्टता और प्रसन्नता समाप्त हो गई। अब समय है कि हम अपना तनाव उस परमात्मा को गिफ्ट कर दें। हम सब परमात्मा की अनमोल सम्पत्ति हैं। अच्छाइयों का एक एक तिनका चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है। बुराई का एक हल्का झोंका उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है। वस्त्रों का व्यक्तित्व होगा तो लोग पसंद करेंगे, किन्तु विचारों का व्यक्तित्व होगा तो लोग अनुसरण करेंगे। विचारों में सद्भावना, शुभकामना, सहानुभूति, सत्यता, ईमानदारी, दिव्यता, शान्ति और प्रेम है तो हमारा जीवन भवन दूर से ही लोगों को आकर्षित करेगा। जीवन की सबसे महंगी चीज वर्तमान है। यदि एक बार यह चला गया तो सारी दुनिया की संपत्ति देकर भी इसे वापस प्राप्त नहीं कर सकते। हमें इस संसार को फिर से तुलसी की तरह सुगंधित और स्वस्थ बनाने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध होने की आवश्यकता है।
समाज सेवा प्रभाग की भोपाल क्षेत्र की संयोजिका राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी शैलजा बहन ने कहा कि तनाव मुक्त जीवन शब्द सुनते ही मन में सुकून सा महसूस होता है। तनाव हर व्यक्ति के लिए सामान्य सी बात हो गई है। तनाव मुक्त जीवन जीना सभी के लिए कठिन हो गया है। लेकिन तनाव मुक्त जीवन जिया जा सकता है। हमारे अंदर दबाव सहन करने की क्षमता है तो हम तनाव मुक्त रह सकते हैं। परिस्थितियों का आना स्वाभाविक है किन्तु उनमें भी मुस्कुराते हुए सफलतापूर्वक बाहर आना जीवन जीने की कला है। परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता है। ब्रह्माकुमारी संस्थान में जो आध्यात्मिक शिक्षा दी जाती है, उसे जीवन का अंग बनाने से तनाव मुक्त रह सकते हैं। जीवन में आने वाला तनाव हमें संदेश देता है कि हमें अपना परिवर्तन करना चाहिए। हम जिन मान्यताओं और धारणाओं और कार्यशैली अपनाए हुए हैं, उन्हें बदलने की आवश्यकता है। मेरा दृष्टिकोण सकारात्मक है या नहीं, हमें जांचना चाहिए। ब्रह्माकुमारी संस्थान इस वर्ष को सकारात्मक परिवर्तन वर्ष के रूप में मना रहा है। सबसे पहले हमें अपने दृष्टिकोण को बदलना है क्योंकि हमारा दृष्टिकोण ही हमारे विचारों की गुणवत्ता निर्धारित करता है। जब हमारे विचार व संकल्प सकारात्मक होंगे तो व्यवहार सकारात्मक होगा। सकारात्मक परिवर्तन आने पर हर परिस्थिति का सकारात्मक पक्ष नजर आएगा और उसी अनुरूप हमारा व्यवहार होगा। इसलिए आने वाला तनाव हमें संदेश देता है कि हमें बदलाव करना चाहिए। यदि बदलता हुआ मौसम हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है तो हम उसके लिए अपने खानपान और पहनावे में परिवर्तन करते हैं। ठीक उसी प्रकार जब हमारे जीवन में तनाव आता है तो हमें उसी अनुरूप अपना दृष्टिकोण बदलना चाहिए। अनावश्यक जल्दबाजी और घबराहट हमारे अन्दर तनाव उत्पन्न करती है। इसलिए तनाव मुक्ति हेतु हमारे जीवन में धैर्यता और निश्चिन्तता होना आवश्यक है।
उत्तराखंड से पधारे ब्रह्माकुमारीज खेल प्रभाग के वरिष्ठ संयोजक ब्रह्माकुमार मेहरचन्द भाई ने कहा कि यदि हम तनाव मुक्त होना चाहते हैं तो आत्मज्ञान से स्वयं को प्रफुल्लित करना होगा। आत्मिक धन से सम्पन्न होकर ही हम शान्ति की अनुभूति कर सकते हैं । ब्रह्माकुमारी संस्थान में सिखाया जाने वाला ज्ञान योग तनाव मुक्त जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। हमारा कार्य ऐसा हो जिससे परमात्मा प्रसन्न हो जाए। यदि हम स्वयं को तनाव मुक्त रखने के लिए राजयोग का अभ्यास करते हैं तो औरों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन सकते हैं। ब्रह्माकुमारी संस्थान समाज में व्यसनों, बुराइयों और तनाव को समाप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। बिना ज्ञान और योग के जीवन में परिवर्तन नहीं हो सकता। समाज को उन मीराओं की आवश्यकता है जो गली-गली जाकर ज्ञान का प्रचार-प्रसार करें।
कुरुक्षेत्र के राष्ट्रीय स्वयं सेवक के अध्यक्ष श्री सुधीर कुमार ने कहा कि मनुष्य का जीवन अत्यन्त दुर्लभ होने के साथ सर्वश्रेष्ठ भी है । गाय का बछड़ा जन्म लेते ही चलना शुरु कर देता है और मनुष्य जन्म लेने के एक वर्ष बाद चलना सीखता है। कोयल का स्वर जन्म लेने के साथ ही मीठा होता है। मनुष्य का जन्म होने के लगभग डेढ़ साल बाद वह बोलना सीखता है। हाथी जन्म लेते ही शक्तिशाली होता है। मनुष्य की क्षमताएं प्रकृति की सीमाओं भी परे है। मनुष्य उन क्षमताओं का उपयोग करके सर्वश्रेष्ठ समाज का निर्माण कर सकता है।
राजयोग प्रशिक्षिका बीके तारा बहन ने राजयोग अभ्यास कराया। ऐरोली मुम्बई से पधारी राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी मीना बहन ने मंच संचालन किया।सम्मेलन का चतुर्थ सत्र :
शिकायत से प्रशंसा की ओर
अभिनेता रॉकसन वाटकर ने कहा कि मेरे शरीर में नौ साल से खून नहीं बन रहा, अध्यात्म के कारण आज जिंदा हूँ। जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं तब अध्यात्म का रास्ता हमेशा खुला रहता है। हम लोग सनातन को भूल रहे हैं, यह हमारी सबसे बड़ी भूल है। शिकायत से सम्मान की ओर विषय पर उन्होंने कहा कि सोच बदलो, दुनिया बदल जाएगी। विचारों को बदलो, सब बदल जाएगा। मुझे मानव जीवन मिला है तो मैं देश, समाज के लिए कुछ अच्छा करूँ, यही जीवन का उद्देश्य है। आज का युवा भारत की संस्कृति को भूल रहा है। मैंने कभी भी गुटखा, तंबाकू, वाइन का विज्ञापन नहीं किया है और न ही करुंगा। भारत की आध्यात्मिक शक्ति का सबसे परिचय कराना ही मेरा उद्देश्य है। जिसका दिल बड़ा है, वही प्रशंसा कर सकता है ।
गुजरात से पधारे कच्छ-भुज क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बाबू भाई ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज से जुड़कर और राजयोग मेडिटेशन अपनाने के बाद मेरा जीवन बदल गया। जीवन में अनेक परिस्थितियां आई, लेकिन परमात्म शक्ति की बदौलत राह के शूल बदलकर फूल के समान बन गये।
चंडीगढ़ से आई वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका बीके सुमन दीदी ने कहा कि आप सभी को अपने जीवन से, परिवार से, पड़ोसियों से, रिश्तेदारों से शिकायत है उसे आज ही परमात्मा को सौंपकर जायें। उन्हें यहीं पर छोड़ कर जायें। अपने आप को खुशनसीब समझें कि मुझे इतना अच्छा जीवन मिला है। मेरा भाग्य कितना अच्छा है।
मंच का संचालन ब्रह्माकुमारी भावना बहन ने किया।सम्मेलन का समापन सत्र
समाज सेवा प्रभाग की महाराष्ट्र क्षेत्रीय संयोजिका राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी सीता बहन अमरावती ने कहा कि हम समाज सेवकों को आपस में एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए। परमात्मा की मत पर चलने वाले की हमेशा जीत होती है। जीवन में अनेक चुनौतियां भी आयेंगी, किन्तु उन पर विजय प्राप्त करने की शक्ति भी परमात्मा अवश्य देता है। पानी की एक एक बूंद मिलकर सागर का रूप ले लेती है। एक बूंद से किसी की प्यास बुझ नहीं सकती लेकिन सागर सारी दुनिया की प्यास बुझा सकता है। इसलिए हमें मिलकर समाज सेवा करनी है। जीवन में धैर्यता बहुत जरूरी है। उतावलेपन में किया गया कार्य कभी सफल नहीं होता या पूर्ण सफलता नहीं मिलती। यह दुनिया स्वर्ग समान सुन्दर थी जो आज नहीं है, ऐसी दुनिया का पुनर्निर्माण करने के लिए हम सभी समाज सेवियों का दायित्व है। वैसा संसार बनाने के लिए हमारे अंदर जिन गुणों और विशेषताओं की आवश्यकता है, उन्हें अवश्य धारण करना चाहिए। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि जैसा व्यवहार हम औरों से चाहते हैं, वैसा व्यवहार हमें भी औरों के साथ करना होगा। सुन्दर समाज के निर्माण के लिए आत्म चिंतन की आवश्यकता है। हम अपना परिवर्तन करके ही सच्ची समाज सेवा कर सकते हैं। समाज सेवा एक संगठित प्रयास है और इस संगठन का संचालक स्वयं परमपिता परमात्मा है। इसलिए हमें अपनी टीम लीडर परमपिता परमात्मा की आज्ञा अनुसार चलना होगा, तभी हम सच्ची समाज सेवा कर सकेंगे। जिस प्रकार तेल बिना दीपक जल नहीं सकता, उसी प्रकार आध्यात्मिकता के बिना जीवन का कोई मोल नहीं। अपने अन्दर नकारात्मकता, वैमनस्य, क्रोध इत्यादि अवगुणों को निकालना होगा तभी हम अपने जीवन को मधुर व आकर्षक बना सकेंगे। अपनी महिमा के लिए कभी भी समाज सेवा नहीं करनी चाहिए। समाज सेवा करते रहें तो स्वत: ही परमात्मा की नजरों में हम महिमा योग्य बन जाएंगे। हमारे अंदर वसुधैव कुटुम्बकम की भावना होनी चाहिए ।
उत्तरकाशी, उत्तराखंड नगर पालिका के चेयरपर्सन भ्राता रमेश सेमवाल ने कहा कि शान्तिवन परिसर में जिस दिव्यता और अलौकिकता का अनुभव हुआ, उसे शब्दों में नहीं कह सकता। मैं यहां आने के बाद चिंतामुक्त और क्रोध मुक्त हो गया। मातृ शक्तियां इस संस्था का सफल संचालन करते हुए सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति और श्रेष्ठ समाज की स्थापना का पुनीत कार्य कर रही है, यह बहुत बड़ी बात है।
सागवाड़ा से पधारी राजयोगिनी पद्मा बहन ने राजयोग का अभ्यास कराया।
डूंगरपुर राजस्थान से पधारी समाज सेवा प्रभाग की अतिरिक्त क्षेत्रीय संयोजिका राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी विजया बहन ने मंच संचालन किया।