“ज्योति जगाएँ …प्रकाश फैलायें…” आसुरी प्रवृत्ति के इस युग में, उदासी एवं मानसिक तनाव ने कईयों को घेर रखा है | ऐसे में शायद आप कुछ ऐसा नया खोज रहे हैं जिस से आपके जीवन में उमंग आ जाए… जो नि:शुल्क भी हो… जो सदा आप के पास भी हो | इसे ‘उत्साह’ या ‘जीवन का उद्देश्य’, भी कह सकते हैं | यह स्वयं का एक शक्तिशाली स्वरूप ही है जो स्वयं के अंतर्मन से उत्पन्न हुआ है | इसके कारण हर नया दिन भी अभिनन्दन योग्य बन जाता है|
इसी सकारात्मक शक्ति के कोष /कुंड को आत्मा कह सकते हैं | आत्मा का अति सूक्ष्म रूप उसे स्थूल आँखों के लिए अदृश्य बनाता है | आध्यात्मिक शक्ति के कारण यह जगमगाती है| यह, मूलतः, मधुर, प्रेम स्वरूप और शांत स्वरूप है| इसमें यादें संग्रहित हैं| आत्मा अद्वितीए है|
व्यक्तित्व
व्यक्तित्व अभौतिक है, आप वास्तविक रूप में आत्मा हैं। आप शरीर नहीं है। ये शरीर आपका है पर आप शरीर नहीं हैं। जिस मानव का हार्ट ट्रान्सप्लांट किया जाता है उसका स्वभाव दान किये व्यक्ति जैसा नहीं बन जाता है। हार्ट प्राप्त किये हुए व्यक्ति का व्यक्तित्व ठीक वैसा ही रहता है जैसा कि पहले था। – भारतीय संस्कृति में भृकुटि के मध्य तिलक लगाना अथवा बौद्ध धर्म में तीसरी आँख का उल्लेख, आत्मा का ही प्रतीक हैं हालांकि इन नयनों से आत्मा दिखती नहीं है किन्तु इसकी आंतरिक शक्ति को राजयोग के कुछ पल के अभ्यास से पुन: जागृत कर सकते हैं। यही आत्मिक शक्ति हमें सदियों तक बढ़ते रहने में सहायक रहती है
समय प्रति समय लोग कहते भी हैं कि फलाना नवजात बच्चा कोई पुरानी आत्मा लगती है। इस कथन पर यदि विचार किया जाये तो हमें लगता है कि हममें से कई इस पृथ्वी पर बहुत लम्बे समय से मानव रूप में रहते आ रहे हैं तथा यह भी जानते हैं कि यह धरती कैसे काम करती है और इसे कैसे नुकसान पहुंच सकता है, ऐसे लोगों को इसकी परवाह है वो भी गहराई से। आत्मा का अध्ययन व्यक्तिगत है क्योंकि हर आत्मा का अपना अस्तित्व और इतिहास है।
स्वयं का ध्यान रखना
पूर्णा रूप से अपना ध्यान रखने के लिए हमें अपनी दिनचर्या में, कुछ समय, राजयोग अभ्यास द्वारा, अपनी ऊर्जा के भंडार को रीचार्ज करने में लगाना चाहिए | राजयोग हमें उस सर्वोच्च शक्ति के स्रोत के साथ जोड़ता है। प्रमुख वैज्ञानिक और प्रसारक भले ही इस स्त्रोत की मान्यता का खंडन करें परन्तु अनेकानेक लोग दैनिक प्रार्थना, चिंतन, सकारात्मक पुष्टिकरण इत्यादि द्वारा अपने जीवन को सशक्त एवं आशावान बनाने में इसका उपयोग करते हैं | राजयोग अभ्यास का प्रयोग करें अथवा न करें, यह आपका निजी फैसला है | इस प्रतिक्रिया की शुरुआत में सोचिये मैं, प्रकाश हूँ, चमकता हुआ प्रकाश।
जीवन का तात्पर्य
जब हम स्वयं को आत्मा मानते हैं तब हम स्वयं के अनादि और मूल रूप के चिंतन में रहते हैं, स्वयं को इसी आधार से जानते हैं और ऐसी सोच मे ही रहते हैं | इस को आत्म अभिमानी स्तिथि भी कहा जाता है|