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राम काज कीन्हे बिनु मोहि कहाँ बिश्राम

                यादगार शास्त्र रामायण में हनुमान जी का चरित्र ऐसे पात्र के रूप में जाना जाता है जो निश्छल और निस्वार्थ भाव से प्रभु के कार्य में मददगार रहे इसलिए उन्हें भारतवर्ष में सभी जगह बड़ी श्रद्धा और भक्ति भाव से स्मरण किया जाता है। जहाँ श्रीराम की पूजा होती है वहां हनुमान जी का स्थान अवश्य होता है। हनुमान जी में बहुत से गुण दृष्टिगोचर होते हैं लेकिन शब्दालंकार और प्रतीकों के रूप में। हज़ारों मंदिरों में मौजूद, रामायण के इस गुणमूर्ति पात्र के कुछ गुणों से प्रेरणा लें तो देशवासियों को अनेक समस्यायों से मुक्ति मिल सकती है।
             अखण्ड ब्रह्मचारी – जीवन प्रदायिनी शक्ति को धारण करने वाले हनुमान जी की पूजा मुख्यतः इसी गुण के कारण होती है। ब्रह्मचर्य में ही बल है। आज भी पहलवानी के अखाड़ों में हनुमान जी का मंदिर पाया जाता है और पहलवान पूर्ण श्रद्धाभाव से इन्हें ही अपना इष्ट स्वीकार करते हैं, भले ही पहलवान इस व्रत का पालन करता हो या नहीं। पवित्रता केवल शारीरिक नहीं, बल्कि दृष्टि और वृत्ति में भी हो, इसका उदहारण रामायण में है। ऐसा कहा जाता है कि जब हनुमान जी, सीता जी की खोज करने के लिए जब लंका में गये तो वहां महलों में तमाम महिलाओं को देखा। जब वे लौटे तो उन्हें इस बात की बहुत ग्लानि हुई कि उन्होंने अनेकों स्त्रियों के मुख देखे। इस पर जामवंत ने उन्हें समझाया कि स्त्रियों के मुख देखने में सीता माता को ही खोजा, न कि उन्हें काम विकार की दृष्टि से देखा।
            आज लोग रामचरितमानस बड़े भाव से पढ़ते और सुनते हैं परन्तु फिर भी महिलाओं के प्रति अत्याचारों में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी होती जा रही है। यदि उपरोक्त भावना और भाव जनमानस में पैदा हो जाएं तो समाज में काम विकार के कारण हो रहे अधिकांश अपराधों पर लगाम लग जाये।
            बल और बुद्धि का सामंजस्य – जब कोई महत्वपूर्ण सेवा करनी हो तो अभिमानी और असंस्कारी लोगों का सामना करने में समय गवाने की बजाये मुसीबत को टालने का प्रयास करना चाहिए। बल और बुद्धि के सामंजस्य से ऐसा किया जा सकता है। सीता जी की खोज के लिए हनुमान जी समुद्र के ऊपर से जा रहे तो उनकी परीक्षा लेने के लिए सुरसा नाम की राक्षसी ने उन्हें रोका और उन्हें खाकर भूख शांत करने की इच्छा व्यक्त की। हनुमान जी ने पहले तो उसे समझने का प्रयास किया कि उनका समय नष्ट न किया जाये। इस पर सुरसा ने उनके बल की परीक्षा के लिए अपने शरीर का आकार बढ़ाया। तब हनुमान जी ने उससे दुगुने आकर का अपना शरीर करके दिखाया। शरीर बढ़ाने की प्रक्रिया थोड़ी देर जारी रही। जब सुरसा ने समुद्र के बराबर अपना शरीर कर दिया तब हनुमान जी ने अपने शरीर का आकार छोटा किया और उसके कपाल में चक्कर लगाकर बहार आ गये। फिर हाथ जोड़कर नम्र भाव से आगे जाने की अनुमति मांगी। उनकी इस विवेक क्षमता से प्रसन्न होकर सुरसा ने उन्हें यह कहकर आशीर्वाद दिया कि राम काज तुम कर सकते हो क्योंकि तुम बलवान और बुद्धिवान हो।
उपरोक्त दृष्टान्त से सबक मिलता है कि वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग में किसी की बराबरी करने के बजाय उसके अहंकार को नम्र भाव से मिटाकर आगे बढ़ने में भलाई है। प्रतिस्पर्धा से ईर्ष्या, द्वेष और घृणा के भाव पैदा हो जाते हैं जिससे मंजिल तक पहुँचने में देर और असुविधा होती है। ज्ञान और योग में भी प्रतिस्पर्धा के बजाय दैवी गुणों की धारणा कर आगे बढ़ने और बढ़ाने वालों को ही मंजिल मिलती है।
              लगनशील और अथक – सीता जी की खोज में समुद्र के ऊपर उड़ते हुए हनुमान जी के रास्ते में एक मैनाक पर्वत भी आता है। वह उनसे विश्राम करने का अनुरोध करता है जिसके पीछे उनके समय को नष्ट करके, उन्हें समय से कार्य पूर्ण न करने देने की भावना है। परन्तु हनुमान जी बड़ी नम्रता से कहते हैं, “राम काज कीन्हे बिनु मोहि कहाँ बिश्राम।” शिव बाबा भी हम बच्चों से कहते हैं कि बच्चे जब तक सतयुगी दुनिया स्थापन नहीं हो जाती तब तक आराम हराम है। सारा संसार अशांत-दुःखी और परेशान है। तुम बच्चों को तो नींद भी नहीं आनी चाहिए। इस बाबा (ब्रह्मा बाबा) को तो रात-रात भर नींद नहीं आती, इस चिंतन में कि कैसे सर्व आत्माओं को प्रभु मिले और वे सुखी हों।
                 असंभव को भी संभव करने वाले – लक्ष्मण को शक्ति बाण लगने के बाद हनुमान जी उनके इलाज के लिए संजीवनी बूटी लाने जा रहे थे। संजीवनी बूटी की पहचान न होने के कारण वे उसे खोज न सके। ऐसे में उन्होंने अपने बल प्रयोग किये और पूरा का पूरा पर्वत ही उठाकर चल दिये। इस घटना का भाव यह है कि बल और विवेक का प्रयोग साथ-साथ करने वाले ही विपरीत परिस्थितियों में असंभव को भी संभव करके विजयी बन सकते हैं।
              विश्वासपात्र – श्रीराम ने विश्वासपूर्वक केवल एक हनुमान जी को ही अपनी अंगूठी देकर सीता जी तक उसे पहुँचाने की बात कही। यह बात सिद्ध करती है कि आप कितने भी बलवान हैं, ज्ञानवान हैं परन्तु आपकी स्थिति ऐसी हो कि आपके ऊपर विश्वास किया जा सके। हाथरसी भाषा में कहा जाता है कि दिल का सच्चा और लंगोट का पक्का कभी भी मात नहीं खा सकता। यदि यह गुण हमारे अंदर है तो कोई भी कार्य असंभव नहीं है।
                  निरहंकारी भाव से सेवाकार्य – पूरी बंदरों की सेना के बीच जब पूछा गया कि कौन समुद्र पार करके सीता जी की खोज करेगा अब सभी अपनी-अपनी डींग मारने लगे। हनुमान जी निरहंकारी भाव से चुपचाप बैठे रहे। जामवन्त ने उन्हें उनकी शक्तियों का स्मरण कराया तब निरहंकारी भाव से सभी का आशीर्वाद लेते हुए आगे बढे। भावार्थ यह है की बलवान होने के साथ, सेवाकार्य करने में नम्रता और निरहंकारिता आवश्यक है, तभी सभी का आशीर्वाद मिल सकेगा।
               एक की लगन में मगन और सरल स्वभाव – श्रीराम के राज्याभिषेक पर हनुमान जी को मोतियों का हार दिया गया सरल स्वभाव से वे उन मोतियों को तोड़कर देखने लगे। किसी ने कारण जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि वे देख रहें है कि क्या इन मोतियों में मेरे राम हैं। उनके भोलेपन का मजाक उड़ाया गया तो उन्होंने छाती चीरकर दिखायी कि उनके ह्रदय में श्रीराम बसते हैं।
            सीता जी को सिंदूर लगाते देखकर उन्होंने जिज्ञासा व्यक्त की तब सीता जी ने बताया कि यह श्रीराम को प्रिय है तब वे पूरे शरीर को ही सिंदूर लगाकर श्रीराम के सामने पहुँच गए। कहते हैं, श्रीराम ने उन्हें गले से लगा लिया। भक्त इसी सिंदूरी रंग का चोला आज भी उन्हें इसी भाव से पहनाते हैं।
                    जिनके नाम की माला स्वयं भगवन जपते हैं – एक बार भगवान एक पुस्तक के पन्ने पलट रहे थे तब वहां भक्त शिरोमणि नारद उपस्थित हुए। नारद ने पूछा आप क्या देख रहें हैं? भगवान ने कहा कि वे उन लोगों के नाम देख रहे हैं जो उनका स्मरण करते हैं। नारद ने अपना नाम जानना चाहा तो भगवान ने कहा कि आपका नाम सबसे ऊपर है। इसपर वे अहंकार में आकर हनुमान जी के पास गए और कहने लगे कि तुमसे बड़ा भक्त तो मैं हूँ और भगवान की लिस्ट में सबसे पहला स्थान मेरा ही है। अहंकार के वशीभूत होकर दूसरे दिन वे पुनः भगवान के पास गए। तब भी भगवान एक पुस्तक के पन्ने पलट रहे थे। नारद ने जिज्ञासा व्यक्त की तो भगवान ने कहा यह वह पुस्तक है जिसमें उन लोगों के नाम हैं जिन्हें भगवान स्वयं याद करते हैं। जब नारद ने नामों का क्रम जानना चाहा तो भगवान ने सबसे पहला नाम हनुमान जी का ही बताया।
            भावार्थ यह है कि कलयुग को सतयुग बनाने के लिए परमपिता परमात्मा शिव के कार्य में बिना नाम, मान, शान और प्राप्ति के इच्छा के निस्वार्थ भाव से मददगार ऐसा बनें कि भगवान भी आपके गुण गाये और आपको याद करे। सैकड़ों गुणों की खान रामायण का यह पात्र हनुमान जी, संगमयुगी पुरुषार्थियों का ही यादगार है। याद में रहने वालों का ही यादगार बनता है।
                                      ब्रह्माकुमार दिनेश
                                      हाथरस (उ. प्र.)